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Bhagvad Gita on Discriminated

विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।​​
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।5.18।।

Meaning:- The learned ones look with eanimity on a Brahmana endowed with learning and humality, a cow, an elephant and even a dog as well as an eater of
dog's meat.


अर्थ:- ज्ञानी महापुरुष विद्या-विनययुक्त ब्राह्मणमें और चाण्डालमें तथा गाय, हाथी एवं कुत्तेमें भी समरूप परमात्माको देखनेवाले होते हैं।


Important word:- learned ones/sages

इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः।​​
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः।।5.19।।

Meaning:- Here [i.e. even while living in the body.] itself is rirth conered by them whose minds are established on sameness. Since Brahman is the same
(in all) and free from defects, therefore they are established in Brahman.


अर्थ:- जिनका मन समत्वभाव में स्थित है, उनके द्वारा यहीं पर यह सर्ग जीत लिया जाता है; क्योंकि ब्रह्म निर्दोष और सम है इसलिये वे ब्रह्म में ही स्थित हैं।।


Important word:- ‘mind’

आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन।​​
सुखं वा यदि वा दुःखं सः योगी परमो मतः।।6.32।।

Meaning:- O Arjuna, that yogi is considered the best who judges what is happiness and sorrow in all beings by the same standard as he would apply to
himself.

अर्थ:- हे अर्जुन ! जो (ध्यानयुक्त ज्ञानी महापुरुष) अपने शरीरकी उपमासे सब जगह अपनेको समान देखता है और सुख अथवा दुःखको भी समान देखता है, वह परम योगी माना गया है।


Important word:- Yogi

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।​​
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।9.29।।

Meaning:- I am impartial towards all beings; to Me there is none detastable or none dear. But those who worship Me with devotion, they exist in Me, and I too exist in them.


अर्थ:- मैं सम्पूर्ण प्राणियोंमें समान हूँ। उन प्राणियोंमें न तो कोई मेरा द्वेषी है और न कोई प्रिय है। परन्तु जो भक्तिपूर्वक मेरा भजन करते हैं, वे मेरेमें हैं और मैं उनमें हूँ।


Important word:- devotion